Solar Eclipse 2025: सर्व पितृ अमावस्या पर तर्पण-श्राद्ध कैसे करें, सूतक नहीं—नियम क्या बदलेंगे?

Solar Eclipse 2025: सर्व पितृ अमावस्या पर तर्पण-श्राद्ध कैसे करें, सूतक नहीं—नियम क्या बदलेंगे?

Anmol Shrestha सितंबर 20 2025 5

सूर्य ग्रहण और सर्व पितृ अमावस्या: कब, कहाँ, क्यों खास

एक ही रात में दो बड़े योग—आसमान में सूर्य ग्रहण और पंचांग में सर्व पितृ अमावस्या। 21 सितंबर की रात 11:00 बजे से 22 सितंबर 3:23 बजे (IST) तक चलने वाला यह Solar Eclipse 2025 भारत से दिखाई नहीं देगा। इसलिए देश में सूतक के नियम लागू नहीं होंगे। फिर भी यह समय आध्यात्मिक साधना के लिए प्रभावी माना जाता है।

यह वर्ष का दूसरा और अंतिम सूर्य ग्रहण होगा। नासा और खगोलीय मानचित्रों के मुताबिक इसका पथ ऑस्ट्रेलिया, अंटार्कटिका, अफ्रीका, हिंद महासागर, दक्षिणी प्रशांत, अटलांटिक और न्यूजीलैंड क्षेत्रों से होकर गुजरता है। भारत की भौगोलिक स्थिति इस दृश्यता दायरे से बाहर है, इसलिए मंदिरों के द्वार बंद करने या पकवान-काज पर रोक जैसी सूतक संबंधी पाबंदियाँ यहां लागू नहीं होंगी।

सर्व पितृ अमावस्या पितृ पक्ष का अंतिम दिन है। इस दिन उन सभी पूर्वजों का स्मरण और तर्पण-श्राद्ध किया जाता है जिनकी तिथि याद न हो, जिनके लिए अलग से तिथियों पर कर्म नहीं हो पाए, या जिनकी वंशावली में अनिश्चितता हो। परिवारों में यह दिन सामूहिक स्मृति का दिन माना जाता है—एक तरह से पूजाघर से लेकर रसोई तक, घर का हर सदस्य पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता जताता है।

तो क्या ग्रहण से नियम बदलते हैं? भारत में दृश्यता न होने से सूतक का सवाल खत्म हो जाता है। यानी—घरों में सुबह से सामान्य दिनचर्या, रसोई में पकवान, और दोपहर में तय समय पर श्राद्ध-संस्कार किए जा सकते हैं। जो लोग ग्रहण के दौरान साधना बढ़ाना चाहते हैं, वे रात के समय जप-ध्यान और दान का संकल्प ले सकते हैं।

तर्पण-श्राद्ध कैसे करें: समय, विधि और सावधानियां

श्राद्ध का समय परंपरागत रूप से दिन का अपराह्न माना गया है—सूर्योदय के बाद, मध्याह्न के आसपास और सूर्यास्त से पहले। पंचांगों में ‘कुतुप’ और ‘रौद्र’ मुहूर्त का उल्लेख मिलता है, पर शहरों में रहने वाले लोग स्थानीय पंचांग/पंडित से समय पूछ लें और उसी दायरे में करें। क्योंकि ग्रहण रात में है और भारत में दिखाई नहीं देता, इसलिए दोपहर का श्राद्ध सामान्य नियमों के साथ किया जा सकता है।

तर्पण की सरल विधि (घर पर भी कर सकते हैं):

  • सुबह नहाकर स्वच्छ, हल्के रंग के कपड़े पहनें। पूजा स्थान या साफ बालकनी/आंगन में दक्षिण की ओर मुख करके बैठें।
  • एक तांबे/स्टील के लोटे में साफ पानी लें। उसमें काला तिल, जौ के दाने और यदि संभव हो तो कुशा घास के छोटे टुकड़े डालें।
  • दाहिने हाथ से, अनामिका (रिंग फिंगर) के पास से जल अर्पित करते हुए तीन बार पितरों को स्मरण करें—संक्षिप्त मंत्र बोलें: “ॐ पितृभ्यः स्वधा नमः” या “स्वधा नमः।” परिवार के दिवंगत नाम लेते हुए शांत मन से आशीर्वाद प्रार्थना करें।
  • यदि कुशा/जौ उपलब्ध न हों, तो केवल स्वच्छ जल और काला तिल से भी तर्पण हो सकता है।
  • अंत में, जल को पौधों/बगीचे की मिट्टी में respectfully उड़ेलें।

श्राद्ध/पिंडदान की रूपरेखा:

  • अपराह्न में चावल का पिंड (गुड़/तिल मिलाकर) बना सकते हैं। शुद्ध देशी घी, काला तिल, दूध और सादे चावल का प्रयोग आम है।
  • सरल नैवेद्य रखें—खीर, पूरी, मौसमी सब्जी, दाल, फल। भोजन सात्त्विक हो, प्याज-लहसुन न डालें।
  • दीपक जलाकर, पूर्वजों के नाम लेकर पिंड/नैवेद्य समर्पित करें, फिर गाय, कुत्ते, कौवे और चींटियों के लिए थोड़ा-सा अलग निकालें। बाद में जरूरतमंदों को भोजन कराएं।
  • पंडित बुला पाना संभव न हो तो परिवार के बड़े सदस्य संकल्प लेकर विधि करा सकते हैं। मान्यता है—नियम से ज्यादा भाव प्रधान है।

ग्रहण काल में क्या करें? चूंकि यह भारत में रात को है और यहां दिखाई नहीं देता, फिर भी यह समय जप-ध्यान के लिए प्रभावी माना गया है। आप शांत जगह पर बैठकर महामृत्युंजय मंत्र, गायत्री मंत्र, “ॐ नमः शिवाय” या पितृ तर्पण से जुड़े स्वधा मंत्र का जप कर सकते हैं। मन करे तो उसी रात एक छोटा-सा दान संकल्प रखें—तिल/गुड़/कंबल/अन्न।

दान क्या दें और किसे दें:

  • अन्न, तिल, गुड़, घी, कंबल/वस्त्र, और जूते-चप्पल (जरूरतमंदों के लिए) व्यावहारिक दान माने जाते हैं।
  • भोजन दान सर्वोपरि—किसी मंदिर/गौशाला/सड़क किनारे श्रमिकों/राहगीरों को सादा भोजन कराएं।
  • यदि समय कम है, तो ऑनलाइन खरीदकर किसी स्थानीय आश्रय या रसोई में भिजवा दें—संकल्प और लाभ वही माना जाता है।

कौन कर सकता है श्राद्ध? परंपरा में सबसे पहले अधिकार पुत्र का माना गया, लेकिन हाल के वर्षों में पंडित समाज भी व्यावहारिक सहमति देता है कि बेटी, पत्नी या परिवार का कोई भी जिम्मेदार सदस्य संकल्प लेकर यह कर्म कर सकता है। विदेश में हों तो स्थानीय समयानुसार दिन के उजाले में करें; यदि आप ऐसे देश में हैं जहां ग्रहण दिखाई देता है, वहां के सूतक नियम स्थानीय परंपरा/गुरु की सलाह के अनुसार अपनाएं।

पितृ पक्ष के साधारण नियम याद रखें:

  • शादी, सगाई, गृहप्रवेश, मुंडन जैसे मांगलिक कार्य टालें। नया घर/वाहन/महंगे गहने खरीदने से परहेज करें।
  • हिंसक/तामसिक भोजन, शराब और अनावश्यक शोर-शराबे से बचें।
  • घर में अनावश्यक काट-छांट, पेड़ की शाखाएँ काटना, या निर्माण-तोड़फोड़ रोकें—शांति और सादगी बनाए रखें।
  • बुजुर्गों का आशीर्वाद लें; परिवार की पुरानी तस्वीरें, दस्तावेज़ सहेजें—यह भी स्मरण का ही हिस्सा है।

शंका यही रहती है—ग्रहण और अमावस्या एक साथ हों तो क्या अतिरिक्त नियम लगते हैं? भारत में इस बार ग्रहण दिखेगा नहीं, इसलिए सामान्य श्राद्ध-तर्पण दोपहर में करना ठीक है। जो लोग परंपरा से जुड़े हैं वे रात में जप-ध्यान कर सकते हैं, पर रसोई बंद रखने या स्नान-दीपक के कड़े नियम यहां आवश्यक नहीं हैं।

समय नहीं मिल पा रहा? सुबह एक छोटा-सा तर्पण कर लें—स्वच्छ जल, काला तिल और तीन बार स्वधा उच्चारण। दफ्तर से लौटकर अपराह्न मुहूर्त के करीब सादा नैवेद्य बना लें और पड़ोस के किसी मजदूर परिवार या सुरक्षा कर्मियों को गरम भोजन दे दें। यह भी उतना ही अर्थपूर्ण है।

जो परिवार हर साल गया, प्रयाग, हरिद्वार आदि में पिंडदान करते हैं, वे तिथि के बाद अवसर मिलने पर स्थान-विशेष जाकर भी संकल्प पूरा कर सकते हैं। शास्त्रों में संकल्प-पालन को तरजीह है—तिथि पर न हो सके तो निकटतम अवसर पर कर लेना भी मान्य है।

ध्यान रखने की छोटी बातें:

  • फोटो के सामने अगरबत्ती/दीप, एक लोटा जल, तिल और सादा नैवेद्य—कम साधन में भी विधि पूरी हो जाती है।
  • परिवार के दिवंगतों के नाम लेते समय मन शांत रखें; दोषारोपण या रोना-धोना नहीं—कृतज्ञता और क्षमा-याचन ही भाव हो।
  • श्राद्ध के बाद घर के लोग सादा सात्त्विक भोजन साझा करें—यह ‘स्मृति-भोज’ जैसा होता है।

यह दुर्लभ संयोग हमें यह याद दिलाता है कि पूर्वजों से रिश्ता रस्मों से आगे जाता है—हमारी आदतों, हमारी जिम्मेदारियों और हमारे दान में उसका असर दिखना चाहिए। समय निकालिए, दो पल बैठिए, नाम लेकर याद कीजिए। घर में शांति बनेगी तो आशीर्वाद भी उतरेगा—यही पितृ पक्ष का असली संदेश है।

5 टिप्पणि

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    Jinky Palitang

    सितंबर 22, 2025 AT 12:34

    ye toh bilkul mast hai! maine socha tha ki grahan ke time ghar ki roshni band karni padegi, lekin ab pata chala ki hum yahan dekh hi nahi pa rahe… toh phir kyun tension le? 😅
    subah uthke ek glass pani mein til daal ke 3 baar 'svadha namah' bola aur phir chai peete hue office chala gaya… kuch bhi na hua! 😄

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    Sandeep Kashyap

    सितंबर 24, 2025 AT 08:30

    Bro, yeh post dekh kar meri aankhein bhari gayi! 🥹
    Meri nani har saal aamavasya par ek chhota sa pind banati thi… usne kabhi pandit nahi bulaya, bas apne haath se chawal, gur aur til se kia… aur phir kutton ko khilakar kehte thi, 'yeh bhi hamara hi bhai hai'…
    Ab main bhi wohi kar raha hoon… aur haan, ek baar maine apne dada ke naam se ek gaon ki school mein 50 kitabein donate kar di… kya pata, unki aatma ne kisi bachche ki zindagi badal di ho? 🙏
    Yeh sab sirf ritual nahi… yeh toh pyaar ka ek tarika hai.

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    Aashna Chakravarty

    सितंबर 24, 2025 AT 12:18

    Wait… yeh sab kya hai? Suno… ye solar eclipse aur sarva pitri amavasya ka milna sirf coincidence nahi hai… yeh ek PLAN hai! 🚨
    USA aur NASA ne isko deliberately aise design kiya hai taki hum logon ko apne purvajon ke saath jodne ki koshish na kare… kyun? Kyunki hum logon ka spiritual power unke liye khatarnaak hai! 🤫
    Yehi wajah hai ki humein kaha jata hai ki 'sutraak nahi hai'… taaki hum kuch na karein aur unki yojana poore ho jaaye! 🤔
    Agar tumne kisi ko bhi bata diya ki tumne aaj til daala… toh tumhare ghar ke baahar ek black van aayega… aur usmein ek pandit baitha hoga jo tumhare naam ka kuch likh raha hoga… yeh sach hai! 🕵️‍♀️
    Abhi tak kisi ne ye nahi bataya… par main janta hoon… kyun ki maine 2018 ke baad se har ek grahan ka map dekha hai… aur ye sab ek pattern hai… ek sabzi ki tarah… ek kala pattern… jise tum sirf ek aankh se dekh sakte ho… agar tumne kisi ko bhi bata diya… toh tumhari aatma bhi…
    …aur haan… kisi ne kaha tha ki 'svadha namah' bolna band kardo… kyun? Kyunki ye mantra unki satellite ko interfere karta hai… 🛰️

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    Kashish Sheikh

    सितंबर 25, 2025 AT 21:16

    Yeh post itna pyara hai ❤️
    Meri maa bhi har saal aamavasya ko kisi na kisi tarah celebrate karti thi… chaahe hum ghar mein ho ya phir Canada mein… ek chhota sa plate, ek jalebi, aur ek til ka kachcha pind… phir hum sab milkar ek chai peete the… aur uske baad humari sabse purani photo dekhte the 😊
    Ab main apne bete ko bhi sikha rahi hoon… aur haan, maine kal ek chai ki dukaan par 10 logon ko free chai pilayi… unke chehre dekh kar meri aankhein bhar aayi 🥲
    Yeh sab kuchh… bas ek pyaar ki baat hai… koi ritual nahi… bas ek dil ki baat 😊
    Shukriya is post ke liye… tumne mere dil ko chhua ❤️

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    dharani a

    सितंबर 26, 2025 AT 15:02

    Guys, ek baat clear kar doon… yeh sab kuchh sahi nahi hai 😅
    Panchang ke hisaab se, sarva pitri amavasya toh 21 September ko hai, lekin solar eclipse 22 September ko shuru hota hai… matlab dono ek saath nahi hain! 🤯
    Naasa ka data dekho… eclipse 21 Sept 23:00 IST se start hua… aur amavasya 22 Sept 00:30 IST pe aayi… matlab 1.5 ghante ka difference hai… aur yeh 'ek saath' ka matlab hi kya hai? 😐
    Agar tumne kisi pandit se poocha toh woh bhi kehega ki 'amavasya ke baad hi pitri tarpan kiya jata hai'… toh phir kyun sab kuchh mila ke bataya ja raha hai? 🤔
    Bas ek baat yaad rakho… jis din amavasya hai… usi din tarpan karo… eclipse ki koi zaroorat nahi… aur agar tumhe lagta hai ki 'sutraak nahi hai' toh tum sahi ho… lekin yeh 'sutraak' ka concept hi 1990 ke baad se banaya gaya hai… pehle toh kisi ne nahi maana tha…
    Chalo, agar tumhe lagta hai ki tumhare pitar ke liye kuchh karna hai… toh karo… lekin yeh sab 'magic timing' ke baare mein mat socho… bas ek chhota sa pind banalo… ek til daalo… aur ek 'svadha namah' bol do… baki sab baat chadhi hai 😄

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