माँ स्कंदमाता: कथा, पूजा और प्रमुख स्थल
माँ स्कंदमाता उत्तर भारत में विशेष सम्मान पाने वाली एक देवी हैं। उनका नाम अक्सर स्कंद, स्कंदेशी या स्कंधा के रूप में सुनने को मिलता है। माना जाता है कि वह भगवान स्कंध (शिव) की ही अवतार हैं और उनकी पूजा मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश, राजस्थान और बिहार में होती है। अगर आप भी इस देवी के बारे में जानना चाहते हैं तो नीचे दी गई जानकारी पढ़ें।
स्कंदमाता की कथा
कथा के अनुसार, माँ स्कंदमाता ने अपने भक्तों को कई कठिनाइयों से बचाया। एक बार एक गाँव में बाढ़ आई और सभी के घर जल में डूबने वाले थे। तभी गाँव वाले रात्रि में स्कंदमाता की पूजा करने लगे। उनके प्रार्थना के बाद बाढ़ का पानी अचानक घट गया और सभी लोग बच गये। इस घटना के बाद स्कंदमाता को ‘रक्षा की मां’ कहा जाने लगा। इसी कारण आज भी कई गाँव में उनके लिए विशेष शरद ऋतु के त्योहार होते हैं।
पूजा विधि और त्योहार
स्कंदमाता की पूजा घर या मंदिर दोनों जगह की जा सकती है। सबसे पहले साफ‑सफ़ाई के बाद एक छोटा साफ कपड़ा या चादर बिचाएँ, फिर उसके ऊपर एक लाल या पीले रंग की वस्त्र रखें। माँ को सुनहरा या सुनहरी मोती लटके हुए कंगन, हल्दी, गुलाब जल और सफेद नारियल चढ़ाएँ। कड़ी रात्रि (जैसे शरद एकादशी) को 108 बार जल कुंडली (जाप) करना शुभ माना जाता है।
त्योहार के दौरान विशेष रूप से ‘स्कंद मातिया’ मेले का आयोजन किया जाता है। इस मेले में श्रद्धालु कपड़े, बेल, फल, मिठाई और धूप के साथ माँ को अर्पित करते हैं। मेले में दो प्रकार के प्रसाद वितरित होते हैं – ‘भोगा रस’ (ख़ास मिठाई) और ‘सरिया’ (ऊँट के दूध से बनी मिठाई)। मेले का प्रमुख आकर्षण भजन‑कीर्तन और कथा सत्र होते हैं जिसमें स्थानीय पंडित स्कंदमाता की कहानी सुनाते हैं।
यदि आप पहली बार माँ स्कंदमाता की पूजा कर रहे हैं, तो आप छोटे स्तर पर शुरू कर सकते हैं। केवल एक लाल कपड़ा, एक छोटा दीपक और थोड़ा चावल या गहूँ का दाना रखें। फिर 7 बार ‘ॐ स्कंदे स्वाहा’ मंत्र दोहराएँ और फिर नमस्कार करें। यह सरल विधि आपके हृदय को शांति देती है और माँ की कृपा को आमंत्रित करती है।
कानपुर में भी स्कंदमाता का एक बड़ा मंदिर है जहाँ हर साल शरद एकादशी को हजारों की संख्या में लोग इकट्ठा होते हैं। वहाँ पर श्रद्धालु नीला कमल (नीला कमल) के फूल, चंदन और तिल के लड्डू चढ़ाते हैं। मंदिर के पुजारी अक्सर भक्तों को बता देते हैं कि माँ स्कंदमाता सभी रोग‑दुर्भाग्य दूर करती है, इसलिए रोगी लोग यहाँ आकर दवाओं के साथ माँ को अर्पित करते हैं।
स्कंदमाता का आध्यात्मिक महत्व केवल बिचारों में नहीं, बल्कि व्यावहारिक जीवन में भी दिखता है। एक माँ की तरह वह अपने भक्तों को सुरक्षा, प्रेम और आशा का संदेश देती है। यदि आप उनके भक्त हैं या नई भक्ति तलाश रहे हैं, तो आज ही इस सरल पूजा विधि को अपनाएँ और माँ की करुणा का अनुभव करें।