नासा एस्ट्रोनॉट बनना: क्या होता है शुरुआत में?
अगर आप कभी सोचे हों कि नासा के एस्ट्रोनॉट कैसे बनते हैं, तो ये लेख आपके लिए है। असली बात तो ये है कि यह सिर्फ वैज्ञानिक पढ़ाई नहीं, बल्कि कड़ी ट्रेनिंग, शारीरिक फिटनेस और टीमवर्क का मेल है। सबसे पहले, अप्लिकेंट को एक मान्य डिग्री चाहिए – इंजीनियरिंग, भौतिकी, बायोलॉजी या गणित में। फिर उनके पास कम से कम दो साल का पेशेवर काम होता है, चाहे वह पायलट, डॉक्टर या इंजीनियर हो।
ट्रेनिंग की कड़ी चुनौतियां
एक बार चयन हो जाए तो असली सफर शुरू होता है। नासा के जॉर्ज काउबॉय ट्रेनिंग सेंटर (JTC) में कई महीनों की ट्रेनिंग होती है। इस दौरान एस्ट्रोनॉट को सिम्युलेटर में क्वाड्रॅटिक और शून्य-गुरुत्वाकर्षण स्थितियों में काम करना सिखाया जाता है। वे स्पेसवॉक के लिए एंटीग्रेविटी पूल में भी प्रशिक्षण लेते हैं, जहाँ पानी में डुबकी लगाकर वे बिना गुरुत्वाकर्षण के काम करने की कोशिश करते हैं।
फिटनेस भी बहुत मायने रखती है। रोज़ाना रनिंग, सायक्लिंग, वर्कआउट और प्लैंक जैसी एक्सरसाइज़ अनिवार्य है। अगर कोई अस्ट्रोनॉट किट तैयार नहीं रखता, तो उसे मिशन के लिए नहीं चुना जाता। इस दौरान मनोवैज्ञानिक टेस्ट भी होते हैं – क्योंकि अंतरिक्ष में अकेले रहना, छोटे कमरे में बंद रहना, और टीम के साथ तनाव संभालना आसान नहीं होता।
मिशन की तैयारी और लाइफ़ इन स्पेस
जब एक एस्ट्रोनॉट को कोई विशेष मिशन सौंपा जाता है, तो वह बहुत सारी तैयारी करता है। जैसे कि अंतरिक्ष यान के नियंत्रण पैनल को समझना, प्रयोगशाला उपकरण चलाना, और बाहरी मरम्मत के लिए रोबोटिक आर्म इस्तेमाल करना। मिशन के दौरान उनका काम केवल वैज्ञानिक प्रयोग ही नहीं, बल्कि अंतरिक्ष स्टेशन की रोज़मर्रा की देखभाल भी है – जैसे पानी की सप्लाई, हवा की शुद्धता, और फ्रिज की मरम्मत।
स्पेस में रहना भी देखो तो मजेदार नहीं है। महिने‑भर का दिन‑रात का चक्र अलग होता है, 90 मिनट में सूरज छू जाता है। खाने के लिए विशेष पैकेज्ड फूड, और हर चीज़ को फिर से इस्तेमाल करने के लिए रीसायकल करना पड़ता है। पर यही तो अस्ट्रोनॉट को धरती की छोटी-छोटी चीज़ों की कदर सिखाता है।
आख़िर में, नासा एस्ट्रोनॉट बनना एक बड़ा सपनों का सफर है, लेकिन इस सफर में कड़ी मेहनत, धैर्य और टीम की जरूरत होती है। अगर आपके दिल में भी अंतरिक्ष के प्रति जिज्ञासाएँ हैं, तो पढ़ाई और फिटनेस को गंभीरता से ले और कभी हिम्मत न हारें।