गोमती नदी की सफाई में भारतीय सेना का अनूठा 'रिवर योग' अभियान

गोमती नदी की सफाई में भारतीय सेना का अनूठा 'रिवर योग' अभियान

सेना की नई पहल: योग, सफाई और जागरूकता एक साथ

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में सुबह- सुबह गोमती नदी के किनारे अब नजारा बदल गया है। वहां भारतीय सेना की टेरिटोरियल आर्मी ने 'रिवर योग' अभियान छेड़ा है। सेना के जवान और स्थानीय लोग एक साथ योग करते हैं, और उसी के बाद जंगल, नदी किनारे और घाटों पर सफाई अभियान चलता है। दरअसल, यह पहल सिर्फ सफाई तक सीमित नहीं है, बल्कि नदी के पुनर्जीवन, पर्यावरण चेतना और लोगों की सोच बदलने के लिए भी है।

यह अभियान गोमती नदी को केंद्र में रखते हुए चलाया जा रहा है। सुबह योग से शुरू होकर घाटों की गंदगी हटाने, कूड़ा-कचरा जमा करने, और लोगों से नदी में कचरा न डालने की अपील तक यह मुहिम जाती है। टेरिटोरियल आर्मी के जवान लोगों के साथ मिलकर, सहूलियत देते हैं और खुद भी नदी के किनारे साफ करते हैं। खास बात यह है कि इसमें बच्चे, महिलाएं और युवा सभी बढ़-चढ़कर भाग ले रहे हैं।

नदी को बचाने की मुहिम में सेना का रोल

इस पूरे अभियान का संचालन 'नमामि गंगे' के तहत किया जा रहा है, जिसमें सेना की भागीदारी देशभर में अलग मिसाल बन रही है। अंग्रेजों के जमाने से सेना अनुशासन और सेवा के लिए जानी जाती है, लेकिन अब वह पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में भी उतर आई है। सेना की यह पहल संदेश देती है कि देश की नदियों को बचाना किसी सरकार, किसी संस्था या विभाग का ही काम नहीं, बल्कि हर नागरिक की जिम्मेदारी है।

'रिवर योग' सिर्फ एक योग कैम्प नहीं है, इसके जरिए हर सप्ताह लोगों को गोमती की सेहत और सफाई के बारे में बताया जाता है। आयोजन में प्लास्टिक के दुष्प्रभाव, गंदगी के कारण नदी में घुलने वाले रसायनों और जैव विविधता पर संकट जैसी बातों पर चर्चा होती है। सेना के अधिकारी लोगों को बताते हैं कि नदी में बह रहा कचरा सिर्फ पानी को ही नहीं, बल्कि उनकी खुद की सेहत को भी असर करता है।

  • प्रत्येक रविवार योग और सफाई अभियान साथ चलते हैं।
  • प्रदूषण रोकने के लिए कार्यशालाएं और छोटी-छोटी जनसभाएं लगती हैं।
  • स्कूली बच्चों और कॉलेज के युवा स्वयंसेवक के तौर पर साथ आते हैं।
  • स्थानीय दुकानदार व घुमंतू लोग कचरा फेंकने पर मना करने लगे हैं।

यह अभियान जून 2025 तक चलेगा और आशा है कि इस लंबे समय में गोमती के किनारे साफ-सुथरे रहेंगे। लोगों की सोच में भी बदलाव आएगा। सेना की पहल ने नदी संरक्षण का जो बीज बोया है, उसमें उम्मीदें लाजिमी हैं।