कुबेर का अहंकार तोड़ा गणेश जी ने: त्रेता युग की महाभोज कथा

कुबेर का अहंकार तोड़ा गणेश जी ने: त्रेता युग की महाभोज कथा

Anmol Shrestha अक्तूबर 11 2025 18

जब भगवान कुबेर, धन के देवता को अपने अनंत भंडार पर घमंड हो गया, तो भगवान श्री गणेश, विघ्नहर्ता ने उनके अहंकार को तोड़ने का अनोखा उपाय निकाला। इस पौराणिक प्रसंग का महत्व इसलिए बड़ा है क्योंकि यह हमें बताता है कि धन की शक्ति भी विनम्रता के सामने बेबसी है, और यह कथा पंडित इंद्रमणि घनस्याल ने अपने ग्रंथों में विस्तारित किया है। यह घटना त्रेता युग के दौरान केदार पर्वत पर घटित हुई, जहाँ सभी देवता एक महाभोज के लिए इकट्ठा हुए थे।

कुबेर का महाभोज और अहंकार

कथा के अनुसार, कुबेर ने अपना सौंदर्य और समृद्धि दिखाने के लिये सभी देवताओं को एक भव्य महाभोजकेदार पर्वत पर आमंत्रित किया। उसने अपना भंडार खोल दिया, जिसमें अनगिनत अनाज, मोती जैसा खीर, और असीम धान्य थे। सच्चे में, उसके संध्या के मेज पर सैकड़ों थालियां रखी थीं, और उसकी प्रचुरता की गिनती नहीं की जा सकती थी।

परंतु, कुबेर की इस भव्यता का मकसद सिर्फ दिखावा नहीं था; वह चाहता था कि सभी देवता उसकी धन‑धर्मिता को देख कर उसकी शक्ति का सम्मान करें। इस घमंड ने उसे अनजाने में एक बड़ा खतरा खड़ा कर दिया।

शिव जी की चेतावनी और गणेश जी की उपस्थिति

जब कुबेर ने भगवान शिव को न्योता दिया, तो शिव जी ने उसकी मंशा को भांप लिया। उन्होंने सीधा कहा, "मैं जानता हूँ कुबेर, यह भोज तुम्हारी धन‑धर्मिता का प्रदर्शन है, परन्तु यह अहंकार का परिचय है।" फिर उन्होंने कहा कि उनके पुत्र भगवान श्री गणेश इस महाभोज में जरूर आएँगे।

गणेश जी का पहुँचना वह क्षण था, जब कहानी अपनी सबसे रोचक मोड़ पर पहुँचती है। उन्होंने एक ही बाइट में ही कुबेर के अनंत भंडार को नष्ट कर दिया। उनके बगल में परोसी गई रसोइये निर्मला को बार‑बार खीर बनाने को कहा गया, परन्तु गणेश जी की भूख कभी नहीं थमी।

भोजन का अनंत चक्र और अहंकार का पतन

भोजन का अनंत चक्र और अहंकार का पतन

निर्मला ने अविरत प्रयास किया, पर गणेश जी ने फिर भी थाली‑थाली खा ली। अंततः कुबेर का पूरा भंडार, जिसमें सोने‑चाँदी और अनाज की अनंत मात्राएँ थीं, समाप्त हो गया। कुबेर ने पहली बार महसूस किया कि उसका अहंकार एक बंजर रेगिस्तान की तरह खाली हो गया है।

विपत्ति की घड़ी में उसने तुरंत भगवान शिव से सहायता माँगी। शिव जी ने उसे बताया कि "धन का मोह केवल एक भ्रम है, असल शक्ति विष्णु भगवान के हाथ में है और गणेश जी ही विघ्नहर्ता हैं।" इस बात ने कुबेर को गहराई से झकझोर दिया। उसने क्षमा माँगी, और अपने अलौकिक धन को दान‑धर्म में लगाना शुरू किया।शिक्षा और आध्यात्मिक संदेश

इस कथा का मुख्य संदेश यह है कि धन और शक्ति का उपयोग गर्व‑घमंड के साथ नहीं, बल्कि विनम्रता और दान‑धर्म के साथ करना चाहिए। गणेश जी ने यहाँ पर केवल भोजन नहीं खाया, बल्कि कुबेर को आत्म‑परिचय का एक कड़वा ज़हरा दिया। यह सीख आज के समय में अधिक प्रासंगिक है, जहाँ आर्थिक सफलता को अक्सर आत्म‑गरिमा के साथ जोड़ दिया जाता है।

वास्तव में, इस कथा को गणेश पुराण, शिव पुराण और स्कंद पुराण में विस्तृत रूप से लिखा गया है। इन ग्रंथों में उल्लेख है कि त्रेता युग में देवताओं और असुरों के बीच कई युद्ध हुए, और इस दौरान ही कुबेर का अहंकार टूट गया।

आज के हिन्दू परम्पराओं में किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत में गणेश जी की पूजा अनिवार्य मानी जाती है। यही कारण है कि घर‑घर में उनके रूप को स्थापित करने से पहले लोग "विघ्नहर्ता" की कृपा माँगते हैं। इस कथा के माध्यम से यह स्पष्ट होता है कि कोई भी कार्य, चाहे वह धन‑संपत्ति का प्रबंधन हो या कोई सामाजिक प्रोजेक्ट, यदि उसमें अहंकार की लत न हों तो ही सफल होता है।

भविष्य में इस कथा का प्रभाव

भविष्य में इस कथा का प्रभाव

आधुनिक समय में कई व्यवसायी और उद्योगपति कुबेर की तरह अपने धन पर अति‑आत्मविश्वास दिखाते हैं। लेकिन अगर वे इस कथा से सीखें, तो वे अपने सम्पद को सामाजिक कल्याण, शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में निवेश करेंगे। इस वजह से न केवल व्यक्तिगत स्तर पर संतुष्टि मिलेगी, बल्कि समाज में सकारात्मक बदलाव भी आएगा।

इसी प्रकार, युवा वर्ग में भी यह कथा प्रेरणा का स्रोत बन सकती है। जब वे पढ़ाई‑लिखाई या करियर में सफल होते हैं, तो उन्हें यह याद दिलाना चाहिए कि "भविष्य का असली धन है विनम्रता और सेवा"।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

कुबेर का अहंकार तोड़ने में गणेश जी की क्या भूमिका थी?

गणेश जी ने कुबेर के महाभोज में लगातार भोजन की थालियों को ख़त्म करके उसकी सम्पत्ति का प्रयोग दिखाया। उनकी अविरत भूख ने कुबेर को यह महसूस कराया कि धन पर गर्व करने से अंत में वह खाली रह जाएगा। इस प्रकार गणेश जी ने कुबेर को विनम्रता का पाठ पढ़ाया।

यह कथा किस ग्रंथ में मिलती है?

इस कहानी का उल्लेख प्रमुख रूप से गणेश पुराण, शिव पुराण और स्कंद पुराण में मिलता है। पंडित इंद्रमणि घनस्याल ने इन ग्रंथों की व्याख्या करते हुए इस कथा को विस्तृत रूप से बताया है।

त्रेता युग में इस घटना का क्या विशेष महत्व है?

त्रेता युग को देवताओं और असुरों के बीच कई संघर्षों का समय माना जाता है। इस युग में कुबेर का अहंकार टूटना यह दर्शाता है कि शक्ति और धन का दुरुपयोग अंततः विनाश की ओर ले जाता है, और यही सच्ची शक्ति आध्यात्मिक विनम्रता में निहित है।

क्या यह कहानी आज के जीवन में प्रासंगिक है?

बिल्कुल। आज भी कई लोग धन‑संपत्ति को अहंकार के साथ जोड़ते हैं। यह कथा हमें याद दिलाती है कि वास्तविक सम्मान और स्थायी सफलता विनम्रता, दान‑धर्म और सामाजिक योगदान से आती है, न कि केवल भौतिक संपत्ति से।

गणेश जी को विघ्नहर्ता कहा जाता है, इसका मतलब क्या है?

विघ्नहर्ता का अर्थ है "बाधाओं को हटाने वाला"। इस कथा में गणेश जी ने कुबेर के अहंकार जैसी बड़ी बाधा को हटाकर उसे सच्ची राह दिखायी। यही कारण है कि हर नए कार्य की शुरुआत में उनकी पूजा की जाती है।

18 टिप्पणि

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    Hrishikesh Kesarkar

    अक्तूबर 11, 2025 AT 01:11

    कुबेर की घमंडभरी दावत सुनकर दिल का हल्का हो गया।

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    Manu Atelier

    अक्तूबर 12, 2025 AT 18:51

    धन के प्रतीक को अहंकार में बदलते देखना, नियति की एक अचरज भरी सच्चाई है।

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    Vaibhav Singh

    अक्तूबर 14, 2025 AT 12:31

    गणेश की भूख तो जैसे पूरे ब्रह्मांड को गले लगा लेती है, साहसिक काम है।

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    Aaditya Srivastava

    अक्तूबर 16, 2025 AT 06:11

    ऐसी दावत में कड़ी मेहनत वाले रसोइयों की कशीश भूल नहीं सकती।

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    Vaibhav Kashav

    अक्तूबर 17, 2025 AT 23:51

    हंसी आती है कि कोई भी देवता अगर खुली थाली देखे तो खुद को भूखा नहीं मानता।

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    Anand mishra

    अक्तूबर 19, 2025 AT 17:31

    इस कथा में एक आकर्षक मोड़ है जहाँ कुबेर का अहंकार अचानक ही गिर जाता है, और यह गिरावट केवल एक सरल कारण से नहीं बल्कि गहरी दार्शनिक समझ से जुड़ी हुई है।
    गणेश ने केवल खाली पेट नहीं, बल्कि घमण्डभरे दिल को भी माँगा था जब उन्होंने पहले घूंट में ही सब कुछ निगल दिया।
    वास्तव में, यह दर्शाता है कि अत्यधिक धन या शक्ति कभी भी स्थायी नहीं रहती, और अंत में वह अपने सृजनकर्ता के सामने नतमस्तक हो जाता है।
    कथा के अनुसार, कुबेर ने प्रारम्भ में अपने अनन्त भंडार को गर्व के साथ प्रदर्शित किया, जिससे सभी देवताओं को अपनी महिमा का अहसास हुआ।
    परन्तु शिव की चेतावनी और गणेश का आगमन इस संतुलन को बिगाड़ देता है।
    जैसे ही गणेश ने भोजन शुरू किया, वह अनन्त रूप से खाता गया और कुबेर का सब भंडार ढीला पड़ गया।
    यह दृश्य यह बताता है कि अति सर्वत्र हानि करता है – चाहे वह धन हो या घमण्ड।
    कुबेर को उस क्षण में प्रतिकूलता का सामना करना पड़ा, जब उसकी सारी संपत्ति समाप्त हो गई।
    उसने फिर शीघ्र ही शिव से मदद माँगी और अंत में वह दानधर्म में सिद्ध हो गया।
    यह कथा हमें सिखाती है कि सच्ची शक्ति आत्म में है, बाह्य दिखावे में नहीं।
    गणेश की भूख केवल शारीरिक नहीं, बल्कि आध्यात्मिक अभाव को भी दर्शाती है।
    भोजन का अनन्त चक्र यहाँ पर वास्तविकता की सीमा को तोड़ देता है, जिससे दर्शक यह समझ पाते हैं कि सभी चीजें अस्थायी हैं।
    गणेश के इस काम ने एक स्पष्ट संदेश दिया: अहंकार का पतन, विनम्रता के उदय से ही संभव है।
    कुबेर ने अंत में अपने धन को समाज में बांटा, जिससे वह एक नया अर्थ प्राप्त कर गया।
    समग्र रूप से, यह कथा हमें याद दिलाती है कि आत्म-परिष्कार और विनम्रता ही सबसे बड़ी संपत्ति है।

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    Prakhar Ojha

    अक्तूबर 21, 2025 AT 11:11

    भूल मत कि धन का दिखावा जब तक कि पाचास दो न हो, गणेश की भौंहें ही बताती हैं।

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    Pawan Suryawanshi

    अक्तूबर 23, 2025 AT 04:51

    गणेश की भुकेली आदत ने सभी को चौंका दिया, ऐसा लगा जैसे वह पूरे ब्रह्मांड को एक ही प्लेट में समा रहा हो।
    भोजन के बाद रसोइया निर्मला का मन भर गया, लेकिन गणेश की भूख कभी नहीं रुकी।
    यह दृश्य कुछ हद तक हास्यप्रद भी था और गहन सीख भी।
    इस प्रकार की कथा हमें याद दिलाती है कि अतिव्ययी के सामने कोई भी शक्ति टिक नहीं सकती।😊

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    priyanka Prakash

    अक्तूबर 24, 2025 AT 22:31

    हमारी संस्कृति में विघ्नहर्ता का सम्मान हमेशा से ही सर्वोपरि रहा है।

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    Pravalika Sweety

    अक्तूबर 26, 2025 AT 16:11

    कृष्ण के वचन जैसा, यह कथा हमें विनम्रता की सीख देती है।

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    anjaly raveendran

    अक्तूबर 28, 2025 AT 09:51

    ऐसे ही संदेशों को पढ़कर मन में शांति का झरना बहता है, यही तो सच्ची शक्ति है।

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    Danwanti Khanna

    अक्तूबर 30, 2025 AT 03:31

    वास्तव में गणेश की भूख ने कुबेर को धिक्कार दिया

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    Shruti Thar

    अक्तूबर 31, 2025 AT 21:11

    कहानी में अनंत भंडार का अंत दिखाता है कि सब कुछ अस्थायी है।

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    Nath FORGEAU

    नवंबर 2, 2025 AT 14:51

    भाई ये कबार फैर थाली खायो वरसा एब्ब क्कछ रें बचेगा।

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    Anu Deep

    नवंबर 4, 2025 AT 08:31

    क्या कभी सोचा है, अगर कुबेर ने विनम्रता अपनाई होती तो कहानी का मोड़ क्या होता?

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    Preeti Panwar

    नवंबर 6, 2025 AT 02:11

    विचार बढ़िया है 😊 पर असली जिए तो यही सीख लेनी चाहिए।

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    Ankit Intodia

    नवंबर 7, 2025 AT 19:51

    अरे यार, ऐसा लग रहा है जैसे गणेश ने सारे हॉगिंग को उलट दिया।

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    saurabh waghmare

    नवंबर 9, 2025 AT 13:31

    इस प्रसंग को देखते हुए हमें अपने स्वयं के अहंकार पर पुनर्विचार करना चाहिए।

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