फिल्म की कहानी और मुख्य पात्र
फिल्म 'दो पत्तियाँ' का निर्देशन शशांक चतुर्वेदी ने किया है और यह नेटफ्लिक्स पर उपलब्ध है। यह फिल्म ट्विन बहनों सौम्या और शैली की उलझी हुई जिंदगी की कहानी है, जिन्हें कृति सनोन ने बेहद खूबसूरती से निभाया है। फिल्म में सौम्या एक शालीन और विनम्र लड़की है जो ध्रुव नामक प्रचंड स्वभाव वाले व्यक्ति से शादी करती है। ध्रुव का किरदार शाहिर शेख ने निभाया है, जो एक क्रूर और अत्याचारी पति की भूमिका में हैं। दूसरी ओर, शैली एक बेतरतीब और उग्र स्वभाव की लड़की है, जो अपनी बहन से बचपन से ही जलन रखती है।
फिल्म का मुख्य आकर्षण कृति सनोन का दमदार प्रदर्शन है। उन्होंने सौम्या और शैली दोनों के चरित्रों को बड़ी निपुणता से निभाया है। शांत, सहनशील सौम्या और बिंदास, बेलगाम शैली के किरदारों के बीच उनकी अभिनय क्षमता दर्शकों को प्रभावित करती है। इसी के साथ शाहिर शेख का प्रदर्शन भी दर्शनीय है, जो इसके नकारात्मक चरित्र के जरिए हुंकार भरते हैं।
फिल्म में घरेलू हिंसा की समस्या
'दो पत्तियाँ' मुख्य रूप से घरेलू हिंसा पर आधारित है, जहां एक पति अपनी पत्नी पर अत्याचार करता है और उसे मानसिक एवं शारीरिक रूप से प्रताड़ित करता है। इस फिल्म की कहानी में महिला संघर्ष, उसके अधिकारों के लिए लड़ाई और समर्थन की जरूरत को दिखाने का प्रयास किया गया है। फिल्म में काजोल ने विद्या ज्योति का किरदार निभाया है, जो कानून की पढ़ाई पूरी कर चुकी एक पुलिस अधिकारी है। वह सौम्या को घरेलू हिंसा के जंग में मदद करती हैं।
फिल्म की पटकथा कणिका ढिल्लन के द्वारा लिखी गई है, जिनकी कहानी दर्शकों को आकर्षित करने में सफल होती है। शुरूआती एक घंटे में यह कथा इतनी जीवंत और रोचक होती है कि दर्शक खुद को फिल्म में खोने से नहीं रोक पाते।
फिल्म का निर्देशन और संगीत
शशांक चतुर्वेदी का निर्देशन देखा जाए तो वह एक विशेष प्रभाव छोड़ता है। कहानी की धार और घटनाओं की प्रस्तुति उनके निर्देशन कौशल का प्रमाण है। हालांकि, फिल्म का आखिरी आधा घंटा घरेलू हिंसा के विरोध में चल रही लड़ाई को खींचता हुआ प्रतीत होता है। यह हिस्सा कहानी की गति को धीमा कर देता है और दर्शकों के धैर्य की परीक्षा लेता है।
फिल्म के संगीत पक्ष की बात करें तो, सचेत-परंपरा का संगीत विशेष प्रभाव नहीं छोड़ता। गीतों की धुनें शायद आपके द्वारा सुनते ही भुला दी जाए। इस दिशा में फिल्म थोड़ा कमजोर नजर आती है।
अभिनय और संवाद
यदि अभिनय की बात करें तो कृति सनोन ने खुद को फिर से साबित किया है। दो विपरीत चरित्र निभाते हुए उन्होंने अपनी अभिनय क्षमता की पूरी छाप छोड़ी है। उनके द्वारा निभाए गए दोनों चरित्र दर्शकों के मन में गहरी छाप छोड़ते हैं। शाहिर शेख ने अपने गंभीर और कठोर स्वभाव से भरे किरदार के माध्यम से दर्शकों को चौंका दिया है।
फिल्म में अपेक्षाकृत कमजोर कड़ी काजोल का अभिनय है। हालांकि उनका विभाजन और विद्या के किरदार को निभाने में थोड़ी देरी होती है, जिससे उनका प्रदर्शन प्रभावित होता है। उनकी भूमिका में देरी और उच्चारण से भी उन्हें थोड़ा संघर्ष करना पड़ा है।
फिल्म की कलात्मकता और उसकी सराहना
यह कहना गलत नहीं होगा कि 'दो पत्तियाँ' एक महत्वपूर्ण फिल्म है जो कठिन विषय को उठाती है। फिल्म की कहानी दर्शकों को सोचने पर मजबूर करती है और उन्हें एक संदेश देती है कि कमजोर वर्ग के लिए आवाज उठाना कितना आवश्यक है। कृति सनोन और शाहिर शेख के अभिनय के कारण यह फिल्म एक प्रशंसा का पात्र बन जाती है। भले ही फिल्म के विशेष हिस्से कुछ खामियों भरे हों, लेकिन कुल मिलाकर यह फिल्म देखने लायक है।
फिल्म की कहानी न केवल घरेलू हिंसा के खिलाफ आवाज उठाती है, बल्कि यह यह भी दिखाती है कि किसी भी महिला के लिए यह अनिवार्य है कि वह अपने अधिकारों के लिए लड़े और बुराई का मुकाबला करे। इस दृष्टिकोण से 'दो पत्तियाँ' समाज के लिए एक महत्वपूर्ण संदेश देती है।