राम मोहन नायडू: आसान भाषा में पूरी कहानी
राम मोहन नायडू का नाम सुनते ही कई लोग उनकी जमीनी सोच और सामाजिक सेवाओं के बारे में याद करते हैं। कानुप और आसपास के इलाकों में उनका काम अक्सर एक मिसाल बन गया था। इस लेख में हम उनके बचपन, पढ़ाई, मुख्य काम और आज के समय में उनका असर समझेंगे।
प्रारम्भिक जीवन और शिक्षा
राम मोहन नायडू का जन्म 1935 में छोटे से गांव में हुआ था। बचपन में उन्हें खेतों में मदद करनी पड़ती थी, इसलिए मेहनत की आदत छोटी उम्र से ही बन गई। उन्होंने प्राथमिक स्कूल पास के गांव में ही पढ़ा, फिर औसत दर्जे की हाई स्कूल में दाखिला लिया। पढ़ाई में तो बहुत बोझ नहीं था, लेकिन सामाजिक समस्याओं में गहरी दिलचस्पी थी। कॉलेज में राजनीति विज्ञान की पढ़ाई के दौरान उन्होंने कई आगे‑पिछले छात्रों को संगठित करना सीख लिया।
कॉलेज के समय ही उन्होंने छोटे‑छोटे आंदोलन चलाए, जैसे किसान अधिकार और शिक्षा की पहुँच बढ़ाने के लिए पिटेशन्स लिखना। दोस्तों ने उन्हें अक्सर ‘नायडू’ कह कर बुलाया, इसलिए आज उनका पूरा नाम राम मोहन नायडू ही रहा।
महत्वपूर्ण योगदान और यादगार उपलब्धियां
1960 के दशक में जब भारत में जल संसाधन का मुद्दा गर्म था, नायडू ने अपने गांव में एक छोटी सी जल संरक्षण योजना शुरू की। उन्होंने घास के बाँध, तालाब और जलाशयों का नक्शा बनाया, जिससे ड्राई सीज़न में भी फसलों को पानी मिल सका। इस प्रोजेक्ट की सफलता को देखकर दूसरे गांवों ने भी वही मॉडल अपनाया। यही कारण है कि आज कई ग्राम्य इलाकों में उनके नाम पर जल संरक्षण केंद्र हैं।
एक और बड़ी उपलब्धि थी जब उन्होंने 1975 में स्थानीय स्तर पर महिला साक्षरता अभियान चलाया। उन्होंने महिलाओं को पढ़ाने के लिए एक सामुदायिक स्कूल खोला, जहाँ शुरुआती तौर पर सिर्फ 15 लड़कियां ही आती थीं। पाँच साल बाद उस स्कूल में 200 से अधिक छात्रा पढ़ने लगीं, और कई ने आगे जाकर अध्यापन में करियर बनाया।
राजनीति में कदम रखने से पहले, नायडू ने कई सामाजिक संगठनों के साथ काम किया। उन्होंने ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन का हिस्सा बन कर गाँव में बुनियादी स्वास्थ्य जांच और टीकाकरण की सुविधा प्रदान की। इस काम ने कई रोगों को रोकने में मदद की और लोगों का भरोसा जीत लिया।
1978 में उन्होंने अपने गांव की पहली बच्चे की लाइब्रेरी खोलने में मदद की। वहाँ पर किताबों का चयन बच्चों की उम्र और रुचियों के हिसाब से किया गया था। इस लाइब्रेरी ने कई बच्चों को पढ़ाई से जोड़ दिया और आज भी वही जगह स्थानीय स्कूलों की मदद करती है।
उनकी सामाजिक सेवाओं को देखते हुए, 1985 में राज्य सरकार ने उन्हें ‘समीक्षा सम्मान’ से सम्मानित किया। यह सम्मान उनके निरंतर प्रयासों की पहचान थी, लेकिन नायडू ने हमेशा कहा कि यह सम्मान उनके साथ काम करने वाले लोगों का है, न कि व्यक्तिगत।
आज भी राम मोहन नायडू का नाम छोटे‑छोटे पहल में सुनाई देता है। कई युवा सामाजिक कार्यकर्ता उनके जरिए प्रेरित होते हैं और नई पहलों को शुरू करते हैं। उनके द्वारा स्थापित जल संरक्षण ढाँचे को नई तकनीकों जैसे सौर पंप और कनेक्टेड सेंसर के साथ अपडेट किया जा रहा है।
अगर आप अपने गांव या शहर में बदलाव लाना चाहते हैं, तो नायडू की कहानी एक ठोस उदाहरण है। छोटा कदम उठाएँ, स्थानीय समस्याओं को समझें और लगातार प्रयास करें – यही उनका मंत्र था। इस तरह आप भी अपने समाज में बड़ा अंतर ला सकते हैं।