राष्ट्रीय एकता: क्या है और क्यों जरूरी?
जब हम ‘राष्ट्रीय एकता’ शब्द सुनते हैं तो दिमाग में देश के हर कोने से लोग एक साथ खड़े होते हैं, ऐसा चित्र बनता है। असल में एकता मतलब है- विविधता में एकता, अलग-अलग बोलियों, धर्म और संस्कृति के बावजूद सबको एक ही लक्ष्य के पीछे चलाना। अगर लोग एक दिमाग से सोचें, तो देश की प्रगति तेज होगी।
सरकार भी इस बात को लेकर कई कदम उठा रही है। स्कूलों में सामुदायिक खेल, राष्ट्रीयत्यागी क्रीड़ा प्रतियोगिताएँ और डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म पर एकता पर चर्चा, सब इसका हिस्सा हैं। इससे बच्चों से लेकर बुज़ुर्ग तक हर उम्र के लोग इस भावना को मजबूत महसूस करते हैं।
हाल की राष्ट्रीय एकता से जुड़ी खबरें
पिछले कुछ हफ़्तों में कई खबरें आईं जो एकता की बात कराती हैं। उदाहरण के तौर पर, पहलगाम हमले के बाद सरकार ने सोशल मीडिया पर बड़े कदम उठाए—पाकिस्तान के कुछ सेलिब्रिटीज़ के अकाउंट ब्लॉक किए गए। इस कदम को कई लोग देश की सुरक्षा और एकता की रक्षा के रूप में देख रहे हैं।
दूसरी ओर, गुवाहाटी में आपातकालीन एंबुलेंस सेवाओं की बाधा ने लोगों को एकजुट किया, स्थानीय प्रशासन ने तुरंत राहत कार्य शुरू किया और जनसहयोग से समस्याओं को हल करने की कोशिश की। ऐसी स्थितियों में लोग एक दूसरे की मदद के लिए आगे आते हैं, जो दिखाता है कि संकट में भी राष्ट्रीय एकता टिकी रहती है।
खुद की मातृभाषा में लिखी गयी ये कहानियाँ, चाहे राजनीति की हों या खेल की, दर्शाती हैं कि भारत में एकता के विविध रूप मौजूद हैं।
एकता बढ़ाने के सरल उपाय
अगर आप अपने आस‑पड़ोस या कार्यस्थल में राष्ट्रीय एकता को और मजबूत करना चाहते हैं तो कुछ छोटे‑छोटे कदम काम आएँगे। पहले, खाने‑पीने की साझा महफ़िल रखें—भिन्न‑भिन्न प्रदेश के व्यंजनों को एक टेबल पर रखें और लोगों को सीखने का मौका दें।
दूसरा, स्थानीय त्यौहारों में भाग लें। चाहे वो दिवाली हो या बांगाल का पोंगा, इन कार्यक्रमों में मिलजुल कर हिस्सा लेने से रिश्ते गहरे होते हैं।
तीसरा, सोशल मीडिया पर ध्रुपद या कविताएँ शेयर करें जो एकता की बात करती हों, लेकिन भाषा‑भेद न रखें। इससे ऑनलाइन भी सकारात्मक माहौल बनता है।
अंत में, सच्ची एकता तभी बनती है जब हम एक दूसरे के विचारों को सुनें, समझें और सम्मान दें। छोटा‑छोटा सहयोग, एक‑दूसरे की मदद, और एक‑साथ हँसना ही राष्ट्रीय एकता का असली मतलब है।