सलीम खान: बॉलीवुड के दिग्गज पटकथा लेखक की कहानी

अगर आप बॉलीवुड की उन कहानियों को जानते हैं जो दिल को छू लेती हैं, तो बहुत संभावना है कि आप सलीम खान के काम से परिचित हों। वह सिर्फ एक लेखन वाले नहीं, बल्कि कई दशकों से सिनेमा की धड़कन को मजबूत करने वाले व्यक्ति हैं। आज हम उनके जीवन के प्रमुख मोड़, करियर के हिट्स और निजी पक्ष को सरल भाषा में समझेंगे।

शुरुआती जीवन और करियर

सलीम खान का जन्म 1935 में मर्दु की एक छोटे से गांव में हुआ था। बचपन में उन्होंने पढ़ाई के साथ-साथ कहानियां सुनाने का शौक विकसित किया। जब हाई स्कूल खत्म हुआ, तो मुंबई आए और फिल्म इंडस्ट्री में एंट्री पाने की कोशिश शुरू की। शुरुआती समय में उन्हें किराए पर काम करना पड़ा, लेकिन उनके लिखने के हुनर ने धीरे‑धीरे ध्यान खींचा।

1970 के दशक में उन्होंने पहला बड़ा ब्रेक ‘संध्या’ से लिया, जहाँ उनकी कहानी ने कर्ता को इनाम दिलवाया। उसके बाद ‘जॉनी मना‘, ‘ঢाक …’ जैसी फिल्मों ने उन्हें एक भरोसेमंद स्क्रीनराइटर बना दिया। उनका तरीका सरल था – वास्तविक रिश्तों और भावनाओं को बड़े पर्दे पर उतारना। यही कारण था कि दर्शकों को उनका काम आसानी से समझ आता था।

परिवार और प्रभाव

सलीम खान की निजी जिंदगी भी काफी रोचक है। उन्होंने 1968 में सादेगी के साथ शादी की, जो स्वयं भी एक महिला अभिनेता थीं। उनका परिवार बॉलीवुड में एक बड़े हस्ती बन गया। सबसे प्रसिद्ध उनके बेटे सलमान खान हैं, जो आज भारतीय सिनेमा के सुपरस्टार हैं। सलीम का समर्थन और मार्गदर्शन सलमान के करियर को भी आकार दिया।सलीम खान ने कई बार कहा कि परिवार के साथ समय बिताना उनके लिए प्रेरणा का स्रोत है। वह अक्सर अपने पोते‑पोतियों को कहानी सुनाते और उन्हें रचनात्मकता की अहमियत बताते। इस तरह उनका असर सिर्फ फिल्मों तक ही नहीं, बल्कि अगली पीढ़ी तक फैला है।

उनकी सबसे बड़ी हिट फिल्मों में ‘शोले’, ‘हर्टिक्ट’, ‘सत्रिय’ और ‘मिस्टर इंडिया’ शामिल हैं। इन फिल्मों ने न सिर्फ बॉक्स‑ऑफ़िस पर धमाल मचाया, बल्कि कई नई टैलेंट को भी मंच दिया। सलीम की पटकथा में अक्सर सामाजिक मुद्दों को भी छूया जाता था, जो जनता को सोचने पर मजबूर करता था।

सलीम खान ने कभी भी खुद को ‘सफल’ नहीं कहा। वह मानते थे कि हर पटकथा एक नई चुनौती है और लिखते समय हमेशा दर्शकों की उम्मीदों को देखते हैं। यही सलाह उन्होंने कई युवा लेखकों को दी, जिससे आज भी कई नई आवाज़ें उनकी राह पर चल पाती हैं।

अगर आप उनके काम को फिर से देखना चाहते हैं, तो ‘शोले’, ‘हर्टिक्ट’ और ‘जॉनी मना’ को अपने प्लेलिस्ट में जोड़िए। ये फ़िल्में सलीम की लिखी हुई प्रमुख कृतियों में से हैं और आपको उनके लेखन की सादगी और गहराई का अंदाज़ा देंगी।

आखिरकार, सलीम खान सिर्फ एक नाम नहीं, बल्कि एक एतिहासिक गिरिड़ी हैं जिसने भारतीय सिनेमा को शब्दों की ताकत से नया रूप दिया। उनके जीवन की कहानी पढ़ना, लिखना और देखना, सब में एक ही बात है – सच्ची भावना और मेहनत का जज्बा।

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