कर्नाटक हाई कोर्ट ने जाति सर्वेक्षण को जारी रखने की अनुमति, भागीदारी स्वैच्छिक और डेटा गोपनीय

कर्नाटक हाई कोर्ट ने जाति सर्वेक्षण को जारी रखने की अनुमति, भागीदारी स्वैच्छिक और डेटा गोपनीय

Anmol Shrestha सितंबर 26 2025 10

कोर्ट का interim आदेश

कर्नाटक हाई कोर्ट ने गुरुवार को एक त्रैमासिक बेंच के सामने प्रस्तुत कई याचिकाओं को अस्वीकार कर राज्य द्वारा चलाए जा रहे कर्नाटक जाति सर्वेक्षण को जारी रखने की अनुमति दी। मुख्य न्यायाधीश विवु बख़रो और जस्टिस सी.एम. जोशी ने यह आदेश एक इंटरिम ऑर्डर के रूप में पारित किया, जिसमें दो कठोर शर्तें लगाई गईं: सर्वेक्षण में भाग लेना पूरी तरह से स्वैच्छिक होना चाहिए और एकत्रित डेटा को किसी भी तीसरे पक्ष को नहीं बताया जा सकता।

बेंच ने बैकवार्ड क्लासेज़ आयोग को तत्काल एक सार्वजनिक सूचना जारी करने का निर्देश दिया, जिसमें स्पष्ट बताया गया कि कोई भी नागरिक सर्वेक्षण में भाग लेने के लिए बाध्य नहीं है। सर्वेक्षणकर्ता को प्रत्येक उत्तरदाता को शुरू में ही यह बताना होगा कि उनकी जानकारी देना वैकल्पिक है और यदि कोई व्यक्ति भाग नहीं लेना चाहता तो राज्य को उसे बदलने के लिए कोई दबाव नहीं बनाना चाहिए।

सर्वेक्षण के पक्ष‑और‑विपक्ष

सर्वेक्षण के पक्ष‑और‑विपक्ष

राज्य सरकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मानु सिंहवी ने तर्क दिया कि याचिकाकर्ता संविधान द्वारा प्रदान की गई शक्ति को चुनौती दे रहे हैं, न कि उसके अस्तित्व को। उन्होंने कहा कि सर्वेक्षण की वैज्ञानिकता या वैधता का न्याय तभी किया जा सकता है जब परिणाम प्रकाशित हों। इसके विपरीत, भारतीय अतिरिक्त वकील ने इसे "सेंसर की तरह छिपा हुआ जनगणना" कहा, जिससे सवाल उठते हैं कि क्या यह प्रक्रिया वास्तव में करप्ट या राजनीतिक हितों से प्रेरित है।

बैकवार्ड क्लासेज़ आयोग के वरिष्ठ अधिवक्ता रविवर्मा कुमार ने कहा कि यह सर्वेक्षण विभिन्न जातियों और समुदायों के प्रतिनिधित्व की वास्तविक तस्वीर पाने के लिए आवश्यक है। उन्होंने दोहराया कि कोई भी नागरिक अनिवार्य नहीं है, और सभी डेटा को गोपनीय रखने की पूरी जिम्मेदारी आयोग की होगी।

कई याचिकाओं में ऐसा कहा गया था कि कर्नाटक में अचानक जातियों की संख्या में बड़ी वृद्धि देखी गई है, जिससे यह अंदाज़ा लगाया गया कि यह सर्वेक्षण राजनीतिक उद्देश्यों के लिए चलाया जा रहा है। अदालत ने इन दावों को सुनते हुए कहा कि अगर सर्वेक्षण के संचालन में कोई अनियमितता हुई तो उचित कार्रवाई होगी, लेकिन वर्तमान में सर्वेक्षण को रोकने का कोई आधार नहीं मिला।

  • डेटा गोपनीयता सुनिश्चित करने के लिए आयोग को तकनीकी उपाय अपनाने होंगे।
  • भागीदारी के दौरान कोई भी व्यक्ति दण्डात्मक कार्यवाही या सामाजिक दमन का सामना नहीं करेगा।
  • सर्वेक्षण के परिणामों के बाद ही नीति निर्माताओं को सही निर्णय लेने में मदद मिलेगी।

इस आदेश से यह स्पष्ट है कि कर्नाटक की सरकार अपने सामाजिक-आर्थिक और शैक्षिक सर्वेक्षण को जारी रखेगी, लेकिन उसे जनता के भरोसे को सुरक्षित रखने के लिए कठोर प्रोटोकॉल अपनाने पड़ेगा। अदालत ने इस बात पर ज़ोर दिया कि न्यायपालिका को न सिर्फ संविधान की रक्षा करनी है, बल्कि व्यक्तिगत अधिकारों की भी सुरक्षा करनी है।

10 टिप्पणि

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    PRATIKHYA SWAIN

    सितंबर 27, 2025 AT 16:45
    अच्छा फैसला। स्वैच्छिकता और गोपनीयता का ध्यान रखा गया है। अब बस लागू करो।
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    Annapurna Bhongir

    सितंबर 27, 2025 AT 20:08
    ये सब बकवास है डेटा चोरी हो जाएगा और फिर जाति के नाम पर बेवकूफों को बांट दिया जाएगा
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    MAYANK PRAKASH

    सितंबर 28, 2025 AT 01:53
    अच्छा हुआ कि अदालत ने इसे रोक नहीं दिया। जाति के आधार पर समाज को समझना जरूरी है।
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    Akash Mackwan

    सितंबर 29, 2025 AT 02:05
    ये सरकार फिर से जाति के नाम पर चुनाव जीतने की चाल चल रही है। बेवकूफ लोग भर्ती हो जाएंगे और फिर नाम बदलकर अनुसूचित जाति बना देंगे। ये लोग तो बस अपनी नींद खराब करने के लिए बैठे हैं। 😡
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    Amar Sirohi

    सितंबर 30, 2025 AT 17:02
    जाति एक सामाजिक संरचना है जिसका अस्तित्व वैदिक काल से है और इसे डेटा के माध्यम से नहीं बल्कि अनुभव के माध्यम से समझना चाहिए। जब तक हम जाति को एक बायोलॉजिकल या राजनीतिक टूल नहीं समझेंगे तब तक ये सर्वेक्षण बस एक औपचारिकता बना रहेगा। आज का भारत जाति के नाम पर जीता है और इसी नाम पर मरेगा।
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    Nagesh Yerunkar

    अक्तूबर 1, 2025 AT 10:22
    अगर ये सर्वेक्षण सच में गोपनीय है तो फिर डेटा कहाँ जाएगा? 😏 और अगर ये सब लोग भाग नहीं ले रहे हैं तो डेटा कैसे आएगा? 🤔 ये सब नीतियाँ तो सिर्फ फोटो शूटिंग के लिए हैं। लोग बस बैठे हैं और अदालत को फंसा रहे हैं। 🚫
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    Daxesh Patel

    अक्तूबर 1, 2025 AT 15:07
    डेटा सुरक्षा के लिए एन्क्रिप्शन और डिसेंट्रलाइज्ड स्टोरेज जरूरी है। अगर सरकार के पास डेटा है तो ये भविष्य में दुरुपयोग हो सकता है। टेक्निकल गाइडलाइन्स जारी करें।
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    Jinky Palitang

    अक्तूबर 2, 2025 AT 12:34
    मैंने अपने गाँव में एक दोस्त को ये सर्वेक्षण भरते देखा। उसने कहा कि उसके नाम के बाद जाति लिखने के लिए कहा गया और उसे डर लगा। अब ये डेटा कहाँ जाएगा? कोई नहीं बता रहा।
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    Sandeep Kashyap

    अक्तूबर 3, 2025 AT 20:15
    ये सर्वेक्षण एक बहुत बड़ा मौका है। हम जानते हैं कि कौन गरीब है, कौन शिक्षित है, कौन पीछे रह गया है। अगर हम इसे सही तरीके से इस्तेमाल करेंगे तो हम सच में समाज को बदल सकते हैं। ये एक न्याय का निशान है। बस डर के आगे न रुकें। 💪
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    Aashna Chakravarty

    अक्तूबर 5, 2025 AT 14:58
    अरे ये सब चाल है। जाति के नाम पर अंग्रेजों ने हमें बांटा था और अब ये नए लोग फिर से वही कर रहे हैं। ये डेटा अमेरिका या चीन को भेज दिया जाएगा। जाति लिखने वाले लोग भारत के खिलाफ षड्यंत्र में शामिल हो रहे हैं। ये लोग अपनी जाति के नाम पर देश बेच रहे हैं। जाति नहीं, भारतीयता है असली। अगर कोई जाति लिखने को कहे तो उसे देशद्रोही कहो। ये सब राजनीति है और अदालत भी उनके हाथों में है। लोग जागो। 🇮🇳

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