भारतीय संविधान – क्या है, क्यों जरूरी है और इसमें क्या है?

जब हम भारत में रहते हैं, तो हर रोज़ हमें कई नियमों का सामना करना पड़ता है – स्कूल में टाइम टेबल, सड़क पर ट्रैफ़िक साइन, बैंक में खाता खोलना आदि। इन सबके पीछे जो बड़ा दस्तावेज़ है, वही है भारतीय संविधान। यह सिर्फ एक कागज़ की शीट नहीं, बल्कि हमारा समाज कैसे चलेगा, इसको तय करता है।

संविधान 26 नवंबर 1949 को अपनाया गया और 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ। इस दिन को गणतंत्र दिवस कहा जाता है क्योंकि तब भारत ने ब्रिटिश राज से पूरी आज़ादी के बाद अपना खुद का गवर्निंग बुक बना लिया। संविधान ने देश को एक रिपब्लिक और लोकतांत्रिक व्यवस्था में ढाला, जहाँ सभी नागरिकों को बराबर अधिकार मिलते हैं।

संविधान की मुख्य विशेषताएँ

भारतीय संविधान में 25 भाग (बुक), 12 शेड्यूल और 447 अनुच्छेद हैं। यद्यपि यह लंबा है, लेकिन इसकी कुछ खास बातें सबको समझ में आती हैं:

  • फेडरल सिस्टम: भारत को केंद्र और राज्यों में बाँटा गया है, लेकिन केंद्र का हाथ कुछ मामलों में ज़्यादा रहता है।
  • धर्मनिरपेक्ष: राज्य किसी भी धर्म को बढ़ावा या दबाव नहीं देता, सबको समान माना जाता है।
  • संवैधानिक संशोधन: समय-समय पर बदलते हुए जरूरतों को पूरा करने के लिए संविधान को बदला जा सकता है, लेकिन प्रक्रिया कठिन है ताकि वह आसानी से बदल न सके।
  • संघीयता और एकता: विभिन्न भाषाओं, संस्कृति और रीति-रिवाज़ों वाले लोगों को एक साथ रहने की राह दिखाता है।

इन विशेषताओं की वजह से भारत एक विविधता भरा लेकिन संगठित देश बना रहता है।

मौलिक अधिकार और कर्तव्य

संविधान ने सभी नागरिकों को कुछ जरूरी अधिकार दिए हैं, जिन्हें हम मौलिक अधिकार कहते हैं। ये अधिकार हमें सरकार से सुरक्षित रहने, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और समानता का भरोसा देते हैं। प्रमुख अधिकार हैं:

  • समानता का अधिकार (धारा 14-18)
  • स्वतंत्रता का अधिकार (धारा 19-22) – बोलना, चलना, नौकरी पाना आदि
  • शिक्षा का अधिकार (धारा 21‑A) – 6‑14 साल के बच्चों को मुफ्त शिक्षा
  • संविधान के तहत कर्तव्य (धारा 51‑A) – देश की रक्षा, पर्यावरण की रक्षा, सम्मानजनक व्यवहार आदि

इन अधिकारों के साथ-साथ कर्तव्य भी जरूरी हैं। अगर हम अपने कर्तव्य पूरी तरह नहीं निभाते, तो अधिकारों की खुशी भी कम हो जाती है। इसलिए हर नागरिक को अपने अधिकारों के साथ उनका सम्मान करने की जिम्मेदारी भी लेनी चाहिए।

संविधान ने न्यायपालिका, कार्यपालिका और विधायी को अलग-अलग रखा है – जिससे कोई भी शक्ति अधिक न हो। सुप्रीम कोर्ट, हाई कोर्ट और नीचे के कोर्ट मिलकर यह देखते हैं कि सभी नियम सही तरीके से लागू हो रहे हैं या नहीं। अगर कुछ कानून या नीति अधिकारों का उल्लंघन करती है, तो ये कोर्ट सही फैसला कर सकते हैं।

संविधान को पढ़ना और समझना कठिन लग सकता है, लेकिन रोज़मर्रा की जिंदगी में इसके कुछ हिस्से हमारे साथ होते हैं। जब आप वोट डालते हैं, स्कूल जाते हैं, या अपना पासपोर्ट बनवाते हैं, तो आप सीधे ही संविधान के नियमों का पालन कर रहे होते हैं। इसलिए इस दस्तावेज़ को जानना सिर्फ पढ़ाई के लिए नहीं, बल्कि अपने अधिकारों को जानने और उनका उपयोग सही तरीके से करने के लिए भी जरूरी है।

आखिर में, भारतीय संविधान हर भारतीय को समान अवसर और सुरक्षा देता है। इसे समझें, इसका सम्मान करें और अपनी जिम्मेदारियों को निभाएँ – तभी लोकतंत्र सही मायने में फल-फूल पाएगा।

न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ के संवैधानिक पीठ के ऐतिहासिक फैसले

10.11.2024

न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ ने भारत के 50वें प्रधान न्यायाधीश के रूप में 700 से अधिक निर्णय दिए हैं, जिनमें कई संवैधानिक पीठ के निर्णय शामिल हैं। उनके कार्यकाल के दौरान दिल्ली सरकार बनाम भारत संघ और सूचना का अधिकार अधिनियम जैसे महत्वपूर्ण मामलों पर ऐतिहासिक निर्णय लिए गए हैं। उनके नेतृत्व में संवैधानिक सिद्धांतों की सिद्धता और सुधार की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाए गए।