भूस्खलन

जब हम भूस्खलन, वर्षा, भौगोलिक ढलान या मानवीय कारकों की वजह से जमीन के बड़े टुकड़े गिर जाने की घटना. Also known as लैंड स्लाइड की बात करते हैं, तो सोचना पड़ता है कि यह सिर्फ़ प्रकृति की मार नहीं, बल्कि कई कारकों का जटिल मिश्रण है। इस टैग पेज में हम इस घटना के मुख्य पहलुओं को समझेंगे और नीचे लिखी खबरों में देखेंगे कि कैसे अलग‑अलग परिस्थितियों में यह सामने आया।

प्राकृतिक आपदा, भूस्खलन, बाढ़, भूकंप आदि जैसी घटनाएँ जो मानव जीवन को प्रभावित करती हैं के वर्ग में भूस्खलन एक प्रमुख खिलाड़ी है। यह घटना अक्सर भूवैज्ञानिक कारण, पर्वतीय ढलान, अस्थिर चट्टान, मिट्टी की संरचना आदि के साथ मिलकर होती है। जब भारी बारिश या तेज़ हवा मिट्टी को ढीला कर देती है, तो ढलान की स्थिरता खत्म हो जाती है और जमीन नीचे गिर पड़ती है। यही कारण है कि हम अक्सर देखते हैं कि बरसात के बाद या तूफ़ान के बाद भूस्खलन की खबरें बढ़ जाती हैं।

मौसम परिवर्तन भी इस समीकरण में अहम भूमिका निभाता है। बाढ़, नदी या जलाशय के अतिक्रमण से उत्पन्न जल स्तर की बढ़ोतरी अक्सर भूस्खलन को ट्रिगर करती है, क्योंकि जल की प्रवाह से मिट्टी की पकड़ कमजोर हो जाती है। भारत में मॉनसून का समय इस जोखिम को जुटाता है; लगातार 30‑40 mm बारिश एक दिन में भी ढलान की सतह को अत्यधिक नमी से भर देती है, जिससे ढलान अस्थिर हो जाती है। खासकर उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और उड़ीसा जैसे क्षेत्रों में यह चक्र दोहराता रहता है।

मानवीय कारक भी नज़रअंदाज़ नहीं किए जा सकते। तेज़ शहरी विकास, पहाड़ी क्षेत्रों में अनियंत्रित निर्माण, और बिन-परवानगी वाले खनन कार्यों से ढलान की प्राकृतिक संतुलन बिगड़ जाती है। जब लोग पहाड़ी क्षेत्रों में घर बनाते हैं या सड़कों के लिए कटाव करते हैं, तो प्राकृतिक स्थिरता टूटती है। इस तरह के कार्यों से न केवल भूमि की संरचना कमजोर होती है, बल्कि सतह जल प्रवाह भी बदल जाता है, जिससे भू‑स्थिरता पर असर पड़ता है। यह समझना जरूरी है कि भूस्खलन को रोकने के लिए विकास कार्यों में पर्यावरणीय मानकों का पालन अनिवार्य है।

रोकथाम की दिशा में तकनीक ने बहुत मदद की है। सतर्कता प्रणाली, सेंसर्स, मौसम स्टेशन और रीयल‑टाइम डेटा के माध्यम से संभावित भूस्खलन क्षेत्रों की पहचान अब कई हाई‑रिस्क ज़ोन में स्थापित है। यह सिस्टम मौसम के बदलाव, मिट्टी के नमी स्तर और भू‑गतिकी डेटा को मॉनिटर करके चेतावनी देता है। इससे स्थानीय प्रशासन और जनसंख्या को समय पर evacuate करने का अवसर मिलता है, जिससे मानवीय नुकसान कम हो सकता है। साथ ही, GIS मैपिंग और ड्रोन सर्वेक्षण से जोखिम वाले क्षेत्रों की पहचान आसान बनी है।

भूस्खलन के बाद राहत कार्य का महत्व उतना ही बड़ा है। राहत कार्य, भूस्खलन से प्रभावित लोगों को अस्थायी आश्रय, भोजन, चिकित्सा सहायता और पुनरुद्धार योजना प्रदान करना सरकार, NGOs और स्थानीय समुदायों के सहयोग से चलता है। त्वरित बचाव, क्षतिग्रस्त बुनियादी ढाँचे की मरम्मत और प्रभावित क्षेत्रों में पुनर्निर्माण के लिए उचित योजना बनाना आवश्यक है। इन कार्यों में पोस्ट‑डिजास्टर रीकवरी प्लान, सडकों की पुनर्निर्माण और वैकल्पिक जीवनयापन के अवसरों की व्यवस्था शामिल होती है।

अब आप इस टैग पेज पर नीचे दी गई खबरों में देखेंगे कि विभिन्न क्षेत्रों में भूस्खलन कब, कैसे और किन कारणों से हुआ। इन लेखों से आप वास्तविक घटनाओं के पहलुओं, सरकारी उपायों और जनता की प्रतिक्रिया को समझ सकेंगे, जिससे भविष्य में ऐसी आपदाओं से बचने के तरीके आपके पास स्पष्ट हो जाएंगे।

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