ट्रंप का 100% चिप टैरिफ: वॉल स्ट्रीट में गिरावट, नैस्डैक-डॉव दबाव में

ट्रंप का 100% चिप टैरिफ: वॉल स्ट्रीट में गिरावट, नैस्डैक-डॉव दबाव में

Anmol Shrestha अगस्त 23 2025 0

रिपोर्ट: अनमोल

100% चिप टैरिफ से बाजार हिल गया, टेक शेयरों पर सबसे ज्यादा मार

आयातित चिप्स पर 100% टैरिफ के राष्ट्रपतिीय प्रस्ताव ने वॉल स्ट्रीट को सीधा झटका दिया। टेक-हैवी नैस्डैक में तेज बिकवाली दिखी और डॉव भी खिंच गया। वजह साफ है: चिप यानी सेमीकंडक्टर हर डिवाइस का दिमाग है, और उस पर अचानक दोगुना टैक्स जैसा बोझ किसी भी बैलेंस शीट की गणित बदल देता है। प्रस्ताव 22 अगस्त 2025 को सामने आया और इसमें उन कंपनियों को छूट दी गई है जो अमेरिका में निर्माण करती हैं या जिन्होंने औपचारिक तौर पर घरेलू उत्पादन का वादा किया है।

नीति का सिग्नल आक्रामक है: अहम तकनीक घर पर बनाओ, नहीं तो भारी टैरिफ भरो। बाजार ने उसी पल यह सवाल उठाया कि क्या सप्लाई चेन इतना जल्दी पलट सकती है। निवेशकों ने रिस्क-ऑफ मोड चुना और सबसे पहले टेक में पोजिशन घटाईं, क्योंकि सबसे बड़ा असर यहीं दिखता है।

Apple ने तुरंत रफ्तार पकड़ी। कंपनी ने अपने नई घोषित अमेरिकन मैन्युफैक्चरिंग प्रोग्राम यानी AMP के तहत 600 अरब डॉलर तक का निवेश बढ़ाने की प्रतिबद्धता जताई ताकि टैरिफ का झटका न लगे। यह आकार किसी एक कंपनी के लिए असाधारण है, और इससे साफ मैसेज भी गया कि बड़े ब्रांड टैरिफ वाली दुनिया में अपना गेमप्लान बदल रहे हैं।

लेकिन घरेलू उत्पादन का मतलब सस्ते चिप्स नहीं है। TSMC, जो एरिजोना में फैब चला रही है, ने वहीं बने चिप्स की कीमत 30% बढ़ाने की बात कही। कंपनी ने वजह बताई: सीमित क्षमता, महंगी मजदूरी, और पहले से चल रहे शुल्क का दबाव। यानी टैरिफ से बचने के बावजूद कॉस्ट बेस ऊपर जा सकता है। यही वह जगह है जहां निवेशक सबसे ज्यादा फंसते हैं—राजस्व सुरक्षित, पर मार्जिन दबाव में।

दूसरी तरफ, दक्षिण-पूर्व एशिया की छोटी चिप कंपनियां, खासकर मलेशिया और फिलीपींस में, इसे अपने एक्सपोर्ट मॉडल के लिए खतरे की घंटी मान रही हैं। उनका कहना है कि अमेरिकी ऑर्डर घटे तो पैकेजिंग, टेस्टिंग और मिड-टियर फाउंड्री बिजनेस को बड़ा झटका लगेगा। ग्लोबल चेन में इन देशों की भूमिका महत्वपूर्ण है—कई अमेरिकी और वैश्विक ब्रांड अपने चिप्स का अंतिम असेंबली और टेस्ट यहीं करवाते हैं।

टेक शेयरों पर दबाव बढ़ने की दूसरी वजह यह भी है कि एनालिस्ट अब कमाई के अनुमान फिर से लिखने को मजबूर होंगे। ज्यादा चिप लागत का मतलब है—फोन, लैपटॉप, सर्वर, यहां तक कि कारों तक में कीमतें ऊपर जा सकती हैं या फिर स्पेसिफिकेशन कट करने पड़ सकते हैं। हाई-एंड डेटा सेंटर चिप्स पहले ही टाइट सप्लाई में हैं; वहां 30% तक की अतिरिक्त कीमत जोड़ दीजिए, और क्लाउड ऑपरेटर्स तक के बजट बिगड़ते दिखते हैं।

कौन जीतेगा, कौन हारेगा: कंपनियां, कीमतें और सप्लाई चेन का अगला अध्याय

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टैरिफ प्रस्ताव की बारीकी समझना जरूरी है। सभी आयातित चिप्स पर 100% शुल्क लगेगा, पर जो कंपनियां अमेरिका में बनाती हैं या जिनकी औपचारिक घरेलू निवेश प्रतिबद्धता है, उन्हें छूट मिलेगी। व्यवहार में इसका मतलब है कि बड़े बहुराष्ट्रीय समूह, जिनके पास कैपेक्स का दम है, वे कागज पर तेज़ी से योजनाएं जमा करेंगे और जमीन पर फैब, पैकेजिंग और टेस्टिंग यूनिट्स खड़ी करने लगेंगे। लेकिन फैब बनाना किसी वेयरहाउस जैसा नहीं है—इसे 2-5 साल लगते हैं, भारी पानी-ऊर्जा की जरूरत होती है, और स्किल्ड इंजीनियरों की टीम चाहिए।

यहीं से एग्जीक्यूशन रिस्क शुरू होता है। एरिजोना, टेक्सास, न्यूयॉर्क जैसे हब में वेतन और कंस्ट्रक्शन लागत बढ़ चुकी है। परमीटिंग, सप्लाई यूटिलिटीज, और स्थानीय सप्लायर बेस तैयार करने में समय लगता है। यही वजह है कि TSMC एरिजोना प्रोडक्शन की कीमतें ऊपर बता रही है। यानी नीति का इरादा रेशोरिंग है, पर शुरुआती साल महंगे होंगे।

Apple का AMP इस नई हकीकत का जवाब है। 600 अरब डॉलर की प्रतिबद्धता सिर्फ फोन असेंबली तक सीमित नहीं रह सकती; इसे सिलिकॉन डिजाइन से लेकर पैकेजिंग, टेस्टिंग और कंपोनेंट इकोसिस्टम तक फैलना होगा। असली कसौटी यह है कि क्या कंपनी सप्लाई चेन को अमेरिका में पर्याप्त पैमाने पर ला पाएगी, और क्या यह करते हुए उसके सकल मार्जिन संभले रहेंगे। अगर नहीं, तो या तो प्रोडक्ट कीमतें बढ़ेंगी या फीचर-मिक्स बदलेगा।

छोटी और मिड-साइज़ एशियाई कंपनियों के लिए यह चरण सबसे कठिन है। अमेरिकी बाजार बड़ा है, और अगर ऑर्डर शिफ्ट होने लगे तो उनकी फाइनेंसिंग कॉस्ट बढ़ेगी, इक्विपमेंट अपग्रेड रुक सकते हैं, और स्केल का फायदा टूट सकता है। इनमें से कई खिलाड़ी पैकेजिंग और टेस्टिंग में विशेषज्ञ हैं, जहां मार्जिन वैसे ही पतले रहते हैं। टैरिफ-ड्रिवन ऑर्डर लॉस उनके लिए बिजनेस मॉडल पर सीधा वार जैसा है।

बड़े अमेरिकी ऑपरेटर, जिनके पास पहले से स्थानीय उपस्थिति है, टैरिफ के सीधे वार से बचे रहेंगे, लेकिन उनकी कॉस्ट लाइन पर दवाब बना रहेगा। मजदूरी और कंस्ट्रक्शन लागत के अलावा घरेलू फैब्स में उपकरण, क्लीन-रूम, और यूटिलिटी खर्च काफी अधिक है। यह खर्च ग्राहक तक पास-थ्रू होगा, और उसका असर इलेक्ट्रॉनिक्स से लेकर ऑटो और इंडस्ट्रियल मशीनरी तक में दिखाई देगा।

बाजार के लिए अगले 3-6 महीनों में देखने वाली चीजें साफ हैं:

  • कंपनियों का गाइडेंस: क्या वे कैपेक्स बढ़ा रही हैं, और कब तक घरेलू उत्पादन शुरू होगा।
  • कीमतों का रोडमैप: TSMC ने 30% बढ़ोतरी का संकेत दिया है; क्या अन्य सप्लायर भी ऐसा ही करेंगे।
  • सप्लाई जोखिम: क्या कंपोनेंट शॉर्टेज लौटेगी, खासकर हाई-परफॉर्मेंस कंप्यूटिंग और ऑटो-ग्रेड चिप्स में।
  • मार्जिन पर असर: टेक हार्डवेयर, कॉन्ट्रैक्ट मैन्युफैक्चरिंग और क्लाउड इंफ्रा कंपनियां अपने मार्जिन गाइडेंस कैसे एडजस्ट कर रही हैं।

नीति मोर्चे पर भी कुछ बड़े सवाल हैं। छूट का दायरा कौन तय करेगा और प्रतिबद्धता की परिभाषा क्या होगी—सिर्फ MoU काफी है या जमीन पर निर्माण की प्रगति देखी जाएगी। क्या यह नीति WTO में चुनौती झेलेगी, और सहयोगी देशों—जैसे एशियाई पार्टनर्स—का रुख क्या होगा। कोई भी प्रतिउत्तरात्मक कदम सप्लाई चेन पर और तनाव डाल सकता है।

CHIPS and Science Act जैसे मौजूदा प्रोत्साहन कार्यक्रमों के साथ यह टैरिफ कैसे बैठेगा, यह भी अहम है। सब्सिडी और टैक्स क्रेडिट मिलेंगे तो घरेलू फैब के कॉस्ट गैप कुछ घटेंगे, लेकिन फिर भी शुरुआती सालों में यूनिट कॉस्ट ऊपर रहने की संभावना है। ऊर्जा, पानी, और परमिट की लागत कम होना भी उतना ही जरूरी है जितना पूंजी की उपलब्धता।

कंज्यूमर की जेब पर इसका क्या असर पड़ेगा। हाई-एंड स्मार्टफोन, लैपटॉप, गेमिंग कंसोल, और EVs जैसे उत्पादों में कॉस्ट-लाइन में चिप का हिस्सा महत्वपूर्ण है। अगर चिप 20-30% महंगी होती है और बाकी कॉम्पोनेंट भी अमेरिकी सप्लाई की वजह से ऊपर जाते हैं, तो अंतिम कीमतें कुछ प्रतिशत तक बढ़ सकती हैं या कंपनियां मॉडल रिफ्रेश धीमा कर सकती हैं। एंटरप्राइज़ सेगमेंट में, डेटा सेंटर कैपेक्स का चक्र प्रभावित हो सकता है, जिससे क्लाउड सर्विस की प्राइसिंग और रोलआउट टाइमलाइन पर असर आएगा।

इक्विटी निवेशकों के लिए संकेत मिला-जुला है। शॉर्ट टर्म में वोलैटिलिटी बनी रहेगी, खासकर उन नामों में जिनकी राजस्व निर्भरता एशियाई फैब्रिकेशन पर ज्यादा है। मीडियम टर्म में अमेरिकी फैब्स, उपकरण सप्लायर, औद्योगिक निर्माण, और ग्रिड/यूटिलिटी अपग्रेड जैसे थिम्स में ऑर्डर फ्लो मजबूत हो सकता है। पर ध्यान रहे, ऑर्डर बुक मजबूत होना और मुनाफा बढ़ना एक चीज नहीं है—कॉस्ट ओवररन और डिले मार्जिन खा सकते हैं।

इस बीच, बॉन्ड मार्केट महंगाई के नए जोखिमों पर अपनी राय बनाएगा। अगर कंपनियां बढ़ी लागत का बड़ा हिस्सा कीमतों में पास कर देती हैं, तो हेडलाइन इन्फ्लेशन में दूसरी लहर दिख सकती है। फेड की राह तुरंत नहीं बदलती, लेकिन लंबी अवधि की दरें ऐसे शॉक्स पर संवेदनशील रहती हैं।

कुल तस्वीर यही कहती है: टैरिफ प्रस्ताव सप्लाई चेन को रेशोरिंग की तरफ धकेलता है, पर उस रास्ते पर शुरुआती पत्थर बड़े हैं। Apple जैसे दिग्गज भारी निवेश करके रास्ता बनाने की कोशिश में हैं, TSMC जैसी फाउंड्रीज कीमतें ऊपर करके गणित साध रही हैं, और एशियाई मिड-टियर कंपनियां अस्तित्व की चुनौती देख रही हैं। बाजार अभी अनिश्चितता की कीमत लगा रहा है—और जब तक उत्पादन की नई लाइनों से स्थिर सप्लाई नहीं आती, टेक सेक्टर पर दबाव बना रहेगा।

एक चीज स्पष्ट है: सेमीकंडक्टर अब सिर्फ तकनीकी उद्योग का मुद्दा नहीं, यह भू-नीति, महंगाई, और निवेश चक्र—तीनों के केंद्र में आ चुका है। जो कंपनियां execution में तेज और पारदर्शी रहेंगी, वे इस उथल-पुथल में भी अपने लिए जगह बना लेंगी।